गरीबों के लिए तोड़ा 3 बेडरूम फ्लैट का सपना, हैदराबाद में युवक चलाता है Rice ATM
रामू डोसापति न केवल राइस एटीएम चलाते हैं बल्कि वह कई और भी सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए हैं.
हैदराबाद के रामू डोसापति गरीबों के लिए राइस एटीएम चलाते हैं और वह इस पर अब तक 50 लाख रुपये खर्च कर चुके हैं. (Image- Ramu Dosapati FB Page)
हैदराबाद के रामू डोसापति गरीबों के लिए राइस एटीएम चलाते हैं और वह इस पर अब तक 50 लाख रुपये खर्च कर चुके हैं. (Image- Ramu Dosapati FB Page)
Rice ATM: कोरोना महामारी के चलते देश में लगे लॉकडाउन (coronavirus lockdown) में संघर्ष और सामाजिक सरोकार से जुड़ी तमाम कहानियां सामने आईं. एक तरफ जहां लोग दो वक्त की रोटी और रोजगार से जुझते दिखाई दिए वहीं ऐसे लोग भी सामने आए जिन्होंने अपना सब कुछ दाव पर लगाकर जरुरतमंदों की मदद की.
लॉकडाउन (lockdown) में सबसे बड़ी समस्या थी दो वक्त की रोटी की. लाखों लोगों बेरोजगार हो चुके थे, बहुत से लोग बेघर भी हो चुके थे. ऐसे लोगों के सामने पेट भरने की समस्या आ रही थी. हालांकि तमाम राज्य सरकारों ने गरीबों के लिए रहने और खाने का इंतजाम कर रही थीं, लेकिन जरूरतमंद आबादी के हिसाब से ये इंतजाम नाकाफी थे.
ऐसे में समाज के कुछ लोग असली हीरो (real heroes) बनकर सामने आए और लोगों के पेट भरने का इंतजाम किया. ऐसे ही लोगों में से एक हैं हैदराबाद (Hyderabad) के रामू डोसापटी (Ramu Dosapati). रामू डोसापटी गरीबों के लिए राइस एटीएम यानी चावल का एटीएम (Rice ATM) चलाते हैं.
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रामू डोसापटी का राइस एटीएम (Ramu Dosapati's Rice ATM)
रामू डोसापटी एक कॉर्पोरेट फर्म में एचआर एक्जिक्यूटिव (HR executive) हैं और वे इस साल अप्रैल से 'राइस एटीएम' (Rice ATM) चला रहे हैं. यह चावल एटीएम भी बैंक एटीएम की तरह 24 घंटे सातों दिन काम करता है. चावल के इस एटीएम से गरीबों को चावल और अन्य खाने का राशन मुहैया कराया जाता है. सबसे अहम बात ये है कि इस एटीएम को रामू अपने पैसों से ही चलाते हैं. अब तक इस पर 50 लाख से ज्यादा रुपये खर्च हो चुके हैं.
रामू कहते हैं कि वह इस काम को बिना किसी स्वार्थ के कर रहे हैं और उन्होंने एटीएम पर खर्च हुई रकम की वापसी के बारे में कभी नहीं सोचा और ना ही कोई इरादा है.
कैसे शुरू हुआ चावल एटीएम (Chawal ka ATM)
चावल एटीएम शुरू करने के पीछे रामू एक किस्सा बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उनके छोटे बेटे ने अपने जन्मदिन पर चिकन (chicken) खाने की इच्छा जाहिर की. बेटे की इच्छा को पूरा करने के लिए रामू चिकन खरीदने के लिए नजदीक की दुकान पर गए. वहां उन्होंने देखा कि एक सिक्योरिटी गार्ड महिला 2000 रुपये का चिकन खरीद रही है.
रामू को अचंभा हुआ कि यह महिला इतना चिकन क्यों खरीद रही है. रामू ने जब इसकी वजह जानी तो उसने बताया कि वह प्रवासी मजदूरों के लिए चिकन खरीद रही है, क्योंकि उनके पास खाना नहीं है.
महिला सिक्योरिटी गार्ड ने बदली सोच
रामू ने महिला की सैलरी के बारे में पूछा तो महिला ने बताया कि उसे 6000 रुपये महीना वेतन मिलता है.
इस घटना ने रामू की सोच ही बदल कर रख दी. रामू ने सोचा कि जब 6000 रुपये महीना कमाने वाली एक महिला जरूरतमंदों पर 2000 रुपये खर्च कर सकती है तो वह क्यों नहीं.
इस घटना के कुछ दिनों बाद रामू को काम मिल गया. वह उस सिक्योरिटी गार्ड महिला के साथ उस जगह गया जहां प्रवासी मजदूर रह रहे थे. उसने 192 मजदूरों की लिस्ट तैयार की जिन्हें राशन और अन्य सामान की जरूरत थी. ये वे लोग थे जो लॉकडाउन में काम छूटने पर 400-500 किलोमीटर दूर अपने घर वापस जाने के लिए पैदल ही निकल पड़े थे.
बचत तोड़ कर की मदद (broke provident fund)
रामू बताते हैं कि उन्होंने शुरू में अपनी बचत से 1.5 लाख रुपये निकाले और जरूरतमंदों की मदद की. लेकिन इस पैसा इन लोगों की कुछ दिन के राशन का ही इंतजाम हो सका. जब वह लोगों में राशन बांटने जाते थे तो कुछ लोगों ने उन्हें राइस एटीएम कहा. और देखते ही देखते राइस एटीएम शब्द आसपास के इलाके में फैल गया. अब ज्यादा संख्या में लोग उनके पास मदद के लिए आने लगे.
फिर वह एक स्थानीय किराना स्टोर मालिक के पास गए और अपने इस शब्द राइस एटीएम को पूरा करने के लिए राशन देने मुहैया कराने की प्रार्थना की. रामू ने बताया कि उन्होंने अपना प्रोविडेंट फंड खाता से पैसा निकालने के लिए अप्लाई कर दिया.
रामू ने किराना स्टोर मालिक को प्रोविडेंट फंड (provident fund) की रसीद दिखाई और कहा कि जैसे ही यह पैसा उनके पास आएगा वह राशन का भुगतान कर देंगे.
3 बेडरूम वाले फ्लैट का सपना छोड़ा (Giving up 3 BHK dream)
रामू इस समय अपनी पत्नी और दो बेटों के साथ एक बैडरूम के फ्लैट में रहते हैं. वे तीन कमरों वाला बैडरूम लेना चाहते थे. रामू बताते हैं कि उनका बेटा लंबे समय से अलग कमरे की मांग कर रहा था.
रामू ने बताया कि उन्होंने एक 3 बीएचके फ्लैट पंसद करके भी रखा था और इसके लिए गांव की एक जमीन 38.5 लाख रुपये में बची थी.
लेकिन एक दिन सुबह उसके अपार्टमेंट के गार्ड ने उन्हें जगाकर कहा कि करीब 50-60 लोग बाहर खड़े हैं उनसे मिलना चाहते हैं. वे सभी लोग राइस एटीएम की आवाज लगा रहे थे.
रामू बताते हैं कि ऐसे हालात में उनकी पत्नी ने भी उसका साथ दिया और उन्होंने तीन बीएचके फ्लैट का सपना छोड़कर जरूरतमंदों की मदद का फैसला किया. उन दिनों हैदाराबाद में बाढ़ भी आई हुई थी और प्रवासी मजदूर बाढ़ के चलते वहीं फंसे हुए थे.
उस दिन से लेकर आज तक रामू गरीबों के लिए राइट एटीएम चला रहे हैं.
जुड़े रहे हैं सामाजिक सरोकारों से
रामू डोसापति का जीवन अपने परिवार और राइस एटीएम तक ही सीमित नहीं है. वह लगातार सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहे हैं. उन्होंने प्लास्टिक थैली के खिलाफ भी अभियान चलाया था. पौधारोपण को लेकर वह कई मुहीम में शामिल हो चुके हैं.
04:24 PM IST